Page 6 - Mann Ki Baat - Hindi (September, 2022)
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िाए। वैसे ्े नामकरण अगर ट्ेपडशनल                                               िीनि्ाल उिाध्ा्िी कहते िे पक िेश   प्रेरणा िेते हैं। अभी कुछ पिन िहले ही िेश
        हो तो कािी अचछा रहेगा, क्ोंपक अिने                                             की  प्रगपत  का  िैमाना,  अन्तम  िा्िान   ने कत्तषिव्िि िर नेतािी सुभा्च्द्र बोस
                                                                                              ू
        समाि  और  संसकृपत,  िरमिरा  और                                                 िर  मौिि  व्नकत  होता  है।  आज़ािी  के   की मूपतषि की सिािना के ज़ररए भी ऐसा ही
        पवरासत से िुड़ी हुई कोई भी चीज़, हमें                                           अमृतकाल  में  हम  िीनि्ालिी  को    एक प्र्ास पक्ा है और अब शहीि भगत
        सहि  ही  अिनी  ओर  आकप्षित  करती                                               पितना िानेंगे, उनसे पितना सीखेंगे, िेश   पसंह  के  नाम  से  चंडीगढ़  ए्रिोट्ट  का
        है।  ्ही  नहीं,  आि  ्े  भी  बताएँ  आपखर                                       को उतना ही आगे लेकर िाने की हम     नाम इस पिशा में एक और किम है। मैं
        इंसानों को एनीमलस के साि कैसे पबहेव                                            सबको प्रेरणा पमलेगी।               चाहूँगा, अमृत महोतसव में हम पिस तरह
                                   ू
        करना चापहए। हमारी िंडामेंटल ड्टी़ि                                                 मेरे  प्ारे  िेशवापस्ो,  आि  से   सवतंत्रता सेनापन्ों से िुड़े पवशे् अवसरों
        में भी तो रेसिेकट ़िॉर एनीमलस िर ज़ोर                                          तीन  पिन  बाि,  ्ानी  28  पसतमबर  को   िर  सेपलब्रेट  कर  रहे  हैं,  उसी  तरह  28
                                                                                                              े
        पि्ा ग्ा है। मेरी आि सभी से अिील है                                            अमृत महोतसव का एक पवश् पिन आ       पसतमबर को भी हर ्ुवा कुछ न्ा प्र्ास
        पक आि इस कमिटीशन में ज़रूर भाग                                                 रहा है। इस पिन हम भारत माँ के वीर   अवश् करे।
        लीपिए, क्ा िता ईनाम सवरूि चीते िेखने                                           सिूत भगत पसंह िी की ि्ंती मनाएँगे।     वैसे मेरे प्ारे िेशवापस्ो, आि सभी
        का िहला अवसर आिको ही पमल िाए!                                                  भगत पसंहिी की ि्ंती के ठीक िहल  े  के िास 28 पसतमबर को सेपलब्रेट करने
                                           इसीपलए  उ्होंने  ‘एकातम  मानव  िशषिन’       उ्हें श्रदांिपल सवरूि एक महतविूणषि   की एक और विह भी है। िानते हैं क्ा
            मेरे  प्ारे  िेशवापस्ो,  आि  25   और ‘अंत्ोि्’ का एक पवचार िेश के          पनणषि् पक्ा है। ्ह त् पक्ा ह  ै         है? मैं पसि्फ िो शबि कहूँगा, लेपकन
        पसतमबर को िेश के प्रखर मानवतावािी,   सामने रखा, िो िूरी तरह भारती् िा।         पक चंडीगढ़ ए्रिोट्ट का नाम                  मुझे िता है, आिका िोश चार
        पचंंतक  और  महान  सिूत  िीनि्ाल    िीनि्ालिी का ‘एकातम मानव िशषिन’             अब  शहीि  भगत  पसंहिी                       गुना ज्ािा बढ़ िाएगा। ्े
        उिाध्ा्िी  का  ि्मपिन  मना्ा  िाता   एक ऐसा पवचार है, िो पवचारधारा के नाम      के  नाम  िर  रखा                                िो  शबि  हैं-  सपिषिकल
        है। पकसी भी िेश के ्ुवा िैसे-िैसे अिनी   िर द्ंद् और िुराग्रह से मुनकत पिलाता है।   िाएगा। इसकी लमब  े                           सट्ाइक।  बढ़  ग्ा
        िहचान और गौरव िर गवषि करते हैं, उ्हें   उ्होंने मानव मात्र को एक समान मानने    सम्  से  प्रतीक्ा  की                             ना  िोश!  हमारे  िेश
                                                                   ु
        अिने  मौपलक  पवचार  और  िशषिन  उतने   वाले भारती् िशषिन को पिर से िपन्ा के     िा रही िी। मैं चंडीगढ़,                           में अमृत महोतसव का
        ही  आकप्षित  करते  हैं।  िीनि्ालिी  के   सामने रखा। हमारे शासत्रों में कहा ग्ा   ििाब,  हरर्ाणा  और                            िो  अपभ्ान  चल  रहा
                                                                                        ं
        पवचारों की सबसे बड़ी खूबी ्ही रही है   है, ‘आतमवत् सवषिभूते्ु’, अिाषित, हम िीव   िेश  के  सभी  लोगों  को                       है, उसे हम िूरे मनो्ोग
        पक  उ्होंने  अिने  िीवन  में  पवशव  की   मात्र को अिने समान मानें, अिने िैसा   इस पनणषि् की बहुत-बहुत                        से  सेपलब्रेट  करें,  अिनी
                     ु
        बड़ी-बड़ी  उिल-ििल  को  िेखा  िा।  वो   व्वहार करें। आधुपनक सामापिक और           बधाई िेता हँ। ू                              खुपश्ों  को  सबके  साि
        पवचारधाराओं के संघ्शों के साक्ी बने िे।   रािनैपतक िररप्रेक्् में भी भारती् िशषिन   सापि्ो,  हम  अिने                       साझा करें।
                                                ु
                                           कैसे िपन्ा का मागषििशषिन कर सकता है,        सवतंत्रता  सेनापन्ों  से
                                           ्े िीनि्ालिी ने हमें पसखा्ा। एक तरह         प्रेरणा  लें,  उनके  आिशशों                    मेरे प्ारे िेशवापस्ो,
                                           से आज़ािी के बाि िेश में िो हीनभावना        िर  चलते  हुए  उनके                           कहते हैं- िीवन के संघ्शों
                                           िी, उससे आ़िािी पिलाकर उ्होंने हमारी        सिनों  का  भारत  बनाएँ,                       से  तिे  हुए  व्नकत  के
                                           अिनी बौपदक चेतना को िाग्रत पक्ा। वो         ्ही  उनके  प्रपत  हमारी                       सामने  कोई  भी  बाधा
                                           कहते भी िे, ‘हमारी आज़ािी तभी सािषिक        श्रदांिपल  होती  है।                            पटक नहीं िाती। अिनी
                                           हो  सकती  है,  िब  वो  हमारी  संसकृपत       शहीिों  के  समारक,                              रोिमराषि  की  पज़िगी
                                                                                                                                                     ं
                                           और  िहचान  की  अपभव्नकत  करे।’              उनके नाम िर सिानों                              में  हम  कुछ  ऐस  े
                                           इसी  पवचार  के  आधार  िर  उ्होंने  िेश      और संसिानों के नाम                              सापि्ों को भी िेखत  े
                पं. दीनदयाल उपाधयाय        के पवकास का पवज़न पनपमषित पक्ा िा।
              25 िसतम्बर, 1916 - 11 फरवरी, 1968                                        हमें  कत्तषिव्  के  पलए                         हैं, िो पकसी-ना-पकसी

                                        2 2                                                                     3      3
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