Page 57 - Mann Ki Baat December 2022
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          बशलक युवा िीढ़ी को भारत के नागररकों   ‘आतमछनभ्षर  भारत’  के  चशमियन,
          के रूि में छमली समद् छवरासत से भी   प्धानमत्री सथानीय उतिा्ों, िरमिराओं,
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          अवगत कराएगी, कयोंछक यही छवरासत    कला,  छशलि  तथा  संसकृछत-समबनधी
          है,  छजसने  भारत  को  अिना  सवछण्षम   काय्षकलािों  और  उनके  संरक्ण  में
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          अतीत छ्या है और यह ही ‘नय इछडया’   शाछमल  सथानीय  लोगों  को  उजागर
          के छनमा्षण की नींव बनेगी।         करने से कभी नहीं चूकते। चाहे कना्षटक
              “जब हम अिनी धरती से जड़ेंगे,   और  उत्तर  प््ेश  का  छखलौना  छनमा्षण
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          तभी तो ऊँचा उड़ेंगे और जब हम ऊँचा   हो,  महाराषट्र  और  नगालैंड  का  बाँस
          उड़ेंगे  तो  हम  छव्व  को  भी  समाधान   का काम हो, असम के चमड़े के उतिा्
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          ्े  िाएँगे।”  प्धानमत्री  समाज  की   हों, खा्ी हो, जूट, किास तथा केले के
          सामछहक  समि्ा  –  कला,  साछहतय    रेशे से बने बैग हों, या ्ेश भर में तैयार
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          और संसकृछत की शशकत को भली-भाछत    छकए जाने वाले िारमिररक वाद् यंत्र –
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          िहचानते हैं और उनहोंने अिने माछसक   कला और छशलि के ऐसे कई सथानीय
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          समबोधन ‘मन की बात’ के माधयम से    रूि  हैं,  छजनहें  प्धानमत्री  ने  प्ोतसाहन
          इस समद् छवरासत को ्ेश के कोने-    छ्या  है।  छमंजर  मेला,  माधविुर  मेला,
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          कोने में िहँचाकर इस ज्ाान को साझा   मरी्ममा मेला और मावली मेला जैस  े
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          करने का ्ाछयतव अिने ऊिर छलया है।  मेले, जो आधछनक समय में हमें अिन  े
              ‘वोकल  ्फॉर  लोकल’  और        गौरवशाली अतीत और िरमिराओं स  े
































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