Page 16 - Mann Ki Baat December 2022
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साछथयो,  अिनी  कला-संसकृछत  के   बॉकसस,  कुसजी,  चाय्ानी,  टोकररयाँ,
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        प्छत  ्ेशवाछसयों  का  ये  उतसाह  ‘अिनी   और  ट्रे  जैसी  ची़जें  खूब  लोकछप्य  हो
                                                                 ू
        छवरासत  िर  गव्ष’  की  भावना  का  ही   रही हैं। यही नहीं, ये लोग बैमब घास स  े
        प्कटीकरण  है।  हमारे  ्ेश  में  तो  हर   खूबसूरत किड़े और सजावट की ची़जें
        कोने में ऐसे छकतने ही रंग छबखरे हैं। हमें   भी बनाते हैं। इससे आछ्वासी मछहलाओं
        भी उनहें सजाने–सवाँरने और संरछक्त   को रोजगार भी छमल रहा है और उनके
        करने  के  छलए  छनरनतर  काम  करना   हुनर को िहचान भी छमल रही है।
        चाछहए।                                साछथयो, कना्षटक के एक ्मिछत्त
                                          सुिारी  के  रेशे  से  बने  कई  यूछनक
            मेरे  पयारे  ्ेशवाछसयो,  ्ेश  के   प्ोडक्टस  इंटरनेशनल  माककेट  तक
        अनेक  क्ेत्र  में  बाँस  से  अनेक  सुन्र   िहुँचा रहे हैं। कना्षटक में छशवमोगा के
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        और उियोगी ची़जें बनाई जाती हैं, छवशर   ये ्मिछत्त हैं – श्ीमान सुरेश और उनकी
        रूि से आछ्वासी क्ेत्रों में बाँस के कुशल   ित्ी श्ीमती मैछथली। ये लोग सुिारी के

        कारीगर, कुशल कलाकार हैं। जब स  े  रेशे से ट्रे, पलेट और हैंडबैग से लेकर
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        ्ेश ने बैमब से जुड़े अग्रजों के जमान  े  कई  डेकोरेछटव  ची़जें  बना  रहे  हैं।  इसी
        के  कानूनों  को  ब्ला  है,  इसका  एक   रेशे से बनी चपिलें भी आज खूब िसन्
        बड़ा बाजार तैयार हो गया है। महाराषट्र   की  जा  रही  हैं।  उनके  प्ोडक्टस  आज
        के िालघर जैसे क्ेत्रों में भी आछ्वासी   लं्न और यूरोि के ्ूसरे बाजारों तक
        समाज के लोग बैमब से कई खूबसूरत    में छबक रहे हैं। यही तो हमारे प्ाकृछतक
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        प्ोडकट  बनाते  हैं।  बैमब  से  बनने  वाल  े  संसाधनों और िारमिररक हुनर की खूबी
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