Page 52 - Mann Ki Baat - November2022
P. 52

ु
                  भारतीय संिीत में कछ ददव्य ह                ै
       “     प्रधिानमंत्ी  ने  अपने  ‘मन  की   बढ़ते महत्् का अनदाज़ा इस बात स  े े

                                          िगाया जा सकता है फक प्रधिानमंत्ी न
        बात’ समबोधिन में भारतीय संगीत की
                                  ु
        सीमाओं  को  पार  करने  और  दफनया
                                          फ्सतार  से  बात  की,  फजसका  प्रयोग
        भर के िोगों द्ारा पसंद फकए जाने के   एक  ऐसे  काय्यक्रम  में  इस  फ््य  पर
                                                  ू
        बारे में बात की और ्ाकई में भारत के   ्े महत््पण्य मुद्ों और पहिों पर चचा्य
        बाहर मेरे सभी प्रदश्यनों में, मैंने महसूस   करने  के  फिए  एक  मंच  के  रूप  में
        फकया है फक शासत्ीय कना्यटक संगीत   करते हैं। पूरी संगीत फबरादरी की ओर
                                                                    े
                                                    े
                       ू
        हो  या  गिोबि  ़फयज़न,  आधयात्मक   से मैं श्ी नरनद्र मोदी को उनके प्ररक
        या फसनेमा संगीत, भारतीय संगीत का   श्दों  और  संगीत  को  हमारे  देश  की
                                                               ू
        दफनया भर के संगीत प्रेफमयों के फदिों   सॉ़फट पा्र के एक महत््पण्य पहिू के
         ु
                    ू
        में एक महत््पण्य सिान है। इससे पता   रूप में मानयता देने के फिए धिनय्ाद
                                                 ू
        चिता  है  फक  इसमें  कुछ  जादुई  और   देना चाहँगा। भारतीय संगीत ने हमेशा
                                           ु
        फदवय  है  और  फसि्फ  भारतीय  संगीत   दफनया  भर  में  एक  अनूठी  भारतीय
                                                             ू
        ही  नहीं;  जैसा  फक  प्रधिानमंत्ी  ने  अपन  े  पहचान बनाने में महान भफमका फनभाई
                                                       ु
        समबोधिन  में  उलिख  फकया,  संगीत   है और साि ही दफनया के नागररकों के
                        े
        ्ाद्यनत्, जो भारत में उ्पन् हुए हैं,   समक्ष हमारी संसककृफत और परमपरा को
        या भारतीय संसककृफत के अफभन् अंग   िैिाया है।    “
              े
                                 े
        हैं,  ्े  क्षत्ीय  सीमाओं  के  परे  तज़ी  स  े
        िोकफप्रयता प्रापत कर रहे हैं।             डॉ. एि. सुब्मणयम
            भारतीय संगीत और ्ाद् यंत्ों के         ्ायफिन ्ादक























                                      48
                                      48
   47   48   49   50   51   52   53   54   55   56   57